डा. एकेबी सिन्हा ने एकबार बक्सर से आरा आने के दौरान प्रेतों से साक्षात्कार से संबंधित एक आपबीती कहानी सुनाई थी. उन दिनों वे छपरा सदर अस्पताल में पदस्थापित थे. एक रोज की बात है. अस्पताल से रात करीब 12 बजे घर लौटे थे. तेज़ बारिश हो रही थी. उन्होंने अभी अपने कपडे भी नहीं बदले थे कि दरवाजे पर जोरों की दस्तक होने लगी. मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा एक 20 -22 साल की लड़की खडी है. उसने बताया कि उसके पिताजी की तबीयत बहुत ख़राब है मैं चलकर देख लूं. मैंने उसे बताया कि मैं रात में मरीज नहीं देखता. इसपर वह बहुत गिडगिडाने लगी. मेरी पत्नी को दया आ गयी. उसने कहा कि इतना कह रही है तो जाकर देख लीजिये. मैं अनमना सा बाहर निकला अपनी कार निकली और उसे बैठने का इशारा किया.
सुनसान सड़कों से होते हुए हम शहर से 5-7 किलोमीटर दूर एक कस्बे में पहुंचे. वहां आबादी से कुछ पहले ही एक मकान के बाहर रुके. लड़की ने मेरा बैग उठाया और मुझे लेकर अन्दर गयी. वहां एक बुजुर्ग व्यक्ति खाट पर लेटा हुआ था. उसकी हालत गंभीर थी. उसके सिरहाने दो महिलाएं कड़ी थीं. मैंने उसकी नब्ज़ टटोली तो बर्फ सा ठंढा लगा. शरीर भी ठंढा था. उसमें जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. लेकिन वह धीरे-धीरे कुछ बोल रहा था जो समझ में नहीं आ रहा था. मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो उसे एक इंजेक्शन दिया और एक दवा खिलाने को दिया. सिरहाने कड़ी एक औरत ने उसे खिला दिया. एक टैबलेट सुबह में खिला देने के लिए भी दिया. इसके बाद चलने के लिए उठा तो लड़की ने मेरा बैग उठा लिया और कार तक छोड़ आई.
अगली सुबह अस्पताल जाने के लिए घर से निकला तो सोचा रात वाले मरीज को देखता चलूं. मैं बस्ती में पहुंचा लेकिन वह मकान कहीं नहीं दिखा. मैं बस्ती में लोगों से पूछने चला गया. घटना की जानकारी देने पर लोग मुझे हैरानी से देखने लगे. एक बुजुर्ग ने बताया कि ऐसा कोई परिवार इस बस्ती में नहीं रहता. यह प्रेत लीला है जो हर एकाध साल पर घटित होती है. वह एक भूता खंडहर है. आप वहीँ गए होंगे. आपने इलाज किया इसलिए बच गए. नहीं तो मार डाले जाते. मैं भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं करता था. इसपर बस्ती के कुछ नौजवानों ने कहा कि उस जगह पर चलिए जहां वह मकान था. मैं दो-तीन लोगों को लेकर वहां पहुंचा तो वहां पूरी तरह खंडहर था. उसमें मकड़े का जाल भरा हुआ था. काफी गंदगी थी. वहां मेरी कार के पहिये का स्पष्ट निशान दिखा और खंडहर में मारा इंजेक्शन और दवा पड़ी थी. मैं चुपचाप वापस लौट आया. घर पर पत्नी और बच्चों को यह बात नहीं बताई. कुछ महीने बाद मेरा तबादला हो गया. दुसरे शहर में जाने के बाद पत्नी और बच्चों को उस रात की घटना की पूरी जानकारी दी. आज भी उस रात की याद आने पर सिहर उठता हूं.
----छोटे
Dear Chhotey,
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Thanks,
Your brother,
Ravindra Nath Sinha
Bahut achchi kahani hai
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