कहानी अतृप्त आत्माओं की-2
घटना उन दिनों की है जब हिंदी सिनेमा अपना स्वरूप ग्रहण कर रहा था और तकनीकी दृष्टिकोण से आज के मुकाबले बहुत पीछे था. मूक फिल्मों का दौर ख़त्म ही हुआ था. ऑडियो की तकनीक शुरू हो चुकी थी. उन दिनों कुछ फ़िल्मी कलाकारों को अपने ऊपर फिल्माए जाने वाले गीत खुद गाने होते थे. उन दिनों स्व. अशोक कुमार सदाबहार हीरो के रूप में जाने जाते थे. उनके प्रशंसकों की तादाद बहुत बड़ी थी.
एक बार की बात है. शाम को अशोक कुमार शूटिंग से वापस लौट रहे थे. उस समय आसमान में बादल छाये हुए थे. ठंढी हवा चल रही थी. उनकी कार जब घर से कुछ पहले रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंचे तो क्रॉसिंग बंद था. अशोक कुमार गाडी से नीचे उतर गए और ड्राईवर से कहा कि गेट खुलने पर गाडी लेकर घर पर पहुंच जाना मैं बागीचे की तरफ से होता हुआ आ जाऊंगा.. वे मौसम का आनंद लेते हुए पेड़ पौधों के बीच से होते हुए निकल गए. एक जगह आंधी में टूटकर गिरा हुआ पेड़ दिखाई पड़े तो थोड़ी देर के लिए वहीं बैठ गए. तभी उन्हें बड़ी सुरीली आवाज़ में किसी के गाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. गाना उन्हीं की फिल्म का था और उन्हीं का गाया हुआ था. उन्होंने गाने वाले को ढूँढने की कोशिश की लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ा. उन्होंने कहा-भाई! कौन हो? बहुत अच्छा गा रहे हो. सामने आकर गाओ. उधर से आवाज़ आई-पहले पूरा गाना सुन लीजिये.
अशोक कुमार ने उसकी आवाज़ की तारीफ़ की और कहा कि ठीक है भाई गाओ मैं सुन रहा हूं. एक घने पेड़ के ऊपर से गाने की आवाज़ आती रही.
गाना पूरा होने के बाद अशोक कुमार ने गाने को सराहा.
ऊपर से आवाज़ आई-यह गाना मुझे बहुत पसंद था. इसके लिए मैंने आपकी फिल्म 26 बार देखी है. मैं इस गाने को बराबर गता था लेकिन कोई मेरा पूरा गाना सुनता नहीं था. एक दिन मेरा मूड बहुत ख़राब हो गाया. मैं फिल्म देखने गया और सिनेमा हौल की छत से कूदकर अपनी जान दे दी. आपने अखबार में खबर पढ़ी भी होगी.
तब से मैं भटक रहा था कि कोई मेरा गाना सुन ले. आज मैं बहुत खुश हूं कि आपका गाया गाना आप ही को सुनाने का मौका मिला और आपने इसकी तारीफ भी की. अब मेरी आत्मा संतुष्ट हो गयी. मैं अपनी दुनिया में जा रहा हूं. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!....अब इजाज़त दीजिये...अलविदा!.......
(अशोक कुमार ने यह कहानी ४०-४५ साल पहले किसी पत्रिका में छपवाई थी. पत्रिका का नाम याद नहीं लेकिन पढ़ी हुई कहानी के आधार पर प्रस्तुत कर रहा हूं.)
---छोटे
घटना उन दिनों की है जब हिंदी सिनेमा अपना स्वरूप ग्रहण कर रहा था और तकनीकी दृष्टिकोण से आज के मुकाबले बहुत पीछे था. मूक फिल्मों का दौर ख़त्म ही हुआ था. ऑडियो की तकनीक शुरू हो चुकी थी. उन दिनों कुछ फ़िल्मी कलाकारों को अपने ऊपर फिल्माए जाने वाले गीत खुद गाने होते थे. उन दिनों स्व. अशोक कुमार सदाबहार हीरो के रूप में जाने जाते थे. उनके प्रशंसकों की तादाद बहुत बड़ी थी.
एक बार की बात है. शाम को अशोक कुमार शूटिंग से वापस लौट रहे थे. उस समय आसमान में बादल छाये हुए थे. ठंढी हवा चल रही थी. उनकी कार जब घर से कुछ पहले रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंचे तो क्रॉसिंग बंद था. अशोक कुमार गाडी से नीचे उतर गए और ड्राईवर से कहा कि गेट खुलने पर गाडी लेकर घर पर पहुंच जाना मैं बागीचे की तरफ से होता हुआ आ जाऊंगा.. वे मौसम का आनंद लेते हुए पेड़ पौधों के बीच से होते हुए निकल गए. एक जगह आंधी में टूटकर गिरा हुआ पेड़ दिखाई पड़े तो थोड़ी देर के लिए वहीं बैठ गए. तभी उन्हें बड़ी सुरीली आवाज़ में किसी के गाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. गाना उन्हीं की फिल्म का था और उन्हीं का गाया हुआ था. उन्होंने गाने वाले को ढूँढने की कोशिश की लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ा. उन्होंने कहा-भाई! कौन हो? बहुत अच्छा गा रहे हो. सामने आकर गाओ. उधर से आवाज़ आई-पहले पूरा गाना सुन लीजिये.
अशोक कुमार ने उसकी आवाज़ की तारीफ़ की और कहा कि ठीक है भाई गाओ मैं सुन रहा हूं. एक घने पेड़ के ऊपर से गाने की आवाज़ आती रही.
गाना पूरा होने के बाद अशोक कुमार ने गाने को सराहा.
ऊपर से आवाज़ आई-यह गाना मुझे बहुत पसंद था. इसके लिए मैंने आपकी फिल्म 26 बार देखी है. मैं इस गाने को बराबर गता था लेकिन कोई मेरा पूरा गाना सुनता नहीं था. एक दिन मेरा मूड बहुत ख़राब हो गाया. मैं फिल्म देखने गया और सिनेमा हौल की छत से कूदकर अपनी जान दे दी. आपने अखबार में खबर पढ़ी भी होगी.
तब से मैं भटक रहा था कि कोई मेरा गाना सुन ले. आज मैं बहुत खुश हूं कि आपका गाया गाना आप ही को सुनाने का मौका मिला और आपने इसकी तारीफ भी की. अब मेरी आत्मा संतुष्ट हो गयी. मैं अपनी दुनिया में जा रहा हूं. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!....अब इजाज़त दीजिये...अलविदा!.......
(अशोक कुमार ने यह कहानी ४०-४५ साल पहले किसी पत्रिका में छपवाई थी. पत्रिका का नाम याद नहीं लेकिन पढ़ी हुई कहानी के आधार पर प्रस्तुत कर रहा हूं.)
---छोटे
I like your story & it is good to read your horror
ReplyDeletestory which is based on existence of soul. keep it up.
अतमाओं की दुनिया की रोचक कहानी।
ReplyDeletenirmala kapila ji! mere blog par aane aur utsaah badhane liye aabhar...
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन-
ReplyDeleteआदरणीय मित्रवर-
धनबाद के ISM में
दिनांक 4 नवम्बर 2012 को संध्या 3 pm
पर एसोसियेशन के गठन के लिए बैठक रख सकते हैं क्या ??
अपनी सहमति देने की कृपा करे ||
सायंकाल 6 से 9 तक एक गोष्ठी का भी आयोजन किया जा सकता है ||
भोजन के पश्चात् रात्रि विश्राम की भी व्यवस्था रहेगी-
पहल के लिए साधुवाद! उस वक़्त मैं रांची में रहूँगा. समय पर पहुँच जाऊंगा.
DeleteBahut achha
ReplyDeleteWell very good story
ReplyDeleteOr achhi rochak or saspens wali banao
ReplyDeleteBhoot Ki Kahaniya | bhoot wala kahani in Hindi
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