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Thursday 18 April 2013

रहस्यमय मौलाना

आरा शहर की वर्षों पुरानी घटना है. उस जमाने की जब एक्का और बग्गी चला करती थी. करीम मियां कभी-कभी देर रात तक एक्का चलाया करते थे. बड़ी चौक के पास टमटम पड़ाव था. एक रात की बात है. करीम मियां सवारी का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने सोचा कि 10-15 मिनट देख लेते हैं सवारी मिली तो ठीक वर्ना घर वापस लौट जायेंगे. कुछ देर बाद वे घर जाने के लिये एक्का मोड़ रहे थे कि आवाज आयी-ए एक्का वाले चलोगे.
करीम मियां ने देखा दो बुजुर्ग मौलाना सफेद कुर्ता पैजामा पहले खड़े थे. उनके गले में सोने की चेन थी. एक के हाथ में छड़ी थी. उन्होंने फिर पूछा- चलोगे..
...क्यों नहीं सरकार जरूर चलेंगे...कहां चलना है....
हमें नवादा कब्रिस्तान वाले मस्जिद में जाना है और फिर यहीं वापस लौटना है. 10-15 मिनट वहां रुकेंगे. चलोगे...
चलूंगा हुजूर....रात काफी हो चुकी है....भाड़ा क्या देंगे....
देखो इक्केवाले.... तुम चलो तुम्हें उम्मीद से ज्यादा पैसे देंगे...
ठीक है सरकार..आइये बैठिये..आपलोग बड़े आदमी हैं जो देंगे रख लेंगे.
वे लोग इक्के पर बैठ गये. करीम मियां ने उसे सड़क पर दौड़ा दिया. मुश्किल से दो किलोमीटर का रास्ता था. सड़क पर ट्रैफिक भी नहीं था. 10 मिनट में पहुंच गये. दोनों मौलाना उतरे और करीम को इंतजार करने को कहकर  मस्जिद की तरफ बढ़ गये. करीम मियां तंबाकू मलने लगे.
पंद्रह मिनट बाद वे वापस लौटे और इक्के पर बैठते हुए वापस लौटने को कहा. करीम खान ने इक्के को वापस लौटा दिया.
रात के सन्नाटे में दौड़ता हुआ इक्का कुछ ही देर में बड़ी चौक पहुंच गया. मौलान नीचे उतरे. उनमें से एक ने पूछा-तुम्हारा नाम क्या है.
करीम ने अपना नाम बताया.
उन्होंने सौ का एक नोट देते हुए कहा-तुम हमें रोज इसी वक्त यहां से नवादा ले जाना और ले आना.
ठीक है सरकार हम रोज आपका इंतजार करेंगे..लेकिन आपने इतना बड़ा नोट दिया है. मेरे पास इसका खुदरा नहीं है.
खुदरा की जरूरत नहीं यह पूरा तुम्हारा है और रोज तुम्हें इतने ही पैसे मिलेंगे.
लेकिन सरकार यह तो बहुत ज्यादा है. इतना तो हम महीनों में भी नहीं कमाते हैं.
वे हंसते हुए बोले-कल ठीक समय पर आ जाना.
उस जमाने में सौ रुपये बहुत ज्यादा होते थे. अच्छे अच्छे अधिकारियों का भी वेतन इतना नहीं होता था. करीम मियां सोचते हुये घर की तरफ बढ़ गये. अगले दिन से वे रात को मौलानाओं का इंतजार करता और हर रोज ुसे सौ का नोट मिल जाता. पैसा आने पर घर की हालत सुधरने लगी. रहन-सहन का स्तर सुधरने लगा. पास पड़ोस के लोगों को समझ में नहीं ाया कि उसकी कौन सी लाटरी लग गयी है. कुछेक लोगों ने पुलिस में शिकायत कर दी. थाना के दारोगा ने रात के वक्त चौक पर सवारी समेत करीम मियां को दबोच लिया और टाउन थाना में लाकर बंद कर दिया. उन्होंने पूछा कि वे लोग कौन सा घंधा करते हैं. करीम ने सफाई देनी चाही तो बोले-ठीक है सुबह में बात करूंगा.
सुबह के वक्त दारोगा जी थाना पहुंचे तो हाजत में करीम खान अकेला नजर आया. उन्होंने पूछा-मौलाना लोग कहां गये.
सरकार हमें झपकी आ गयी थी. आंख खुली तो वे पता नहीं कैसे कहां चले गये.
चाबी तो मेरे पास थी. ताला भी बंद है. फिर वे कैसे निकल गये....दारोगा ने बड़बड़ाते हुये कहा.
सही-सही बताओ तुम्हारे पास इतना धन कहां से आया.
सरकार ये मौलाना लोग रोज मेरे इक्के पर नवादा जाते और वापस आते थे और सौ रुपया रोज देते थे.
वे कोई जिन्न भूत तो नहीं थे...
पता नहीं साहब हम तो गरीब आदमी हैं...भाड़ा इतना ज्यादा देते थे तो उनको ले जाने से मना कैसे करता....
ठीक है तुम जा सकते हो....
करीम खान उसके बाद रात-रात भर टमटम पड़ाव पर पड़ा रहता लेकिन वे मौलाना फिर उसे कभी नहीं मिले.
दारोगा जी के साथ भी अजीबो-गरीब घटनाएं होने लगीं. कई बार अदृश्य हाथों ने थप्पड़ मारकर मुंह लाल कर दिया. उन्होंने कान पकड़ा कि अब कभी बिना जांचे परखे ऐसी कार्रवाई नहीं करेंगे और अपना तबादला करा लिया. आरा के लोग आज भी इस कहानी को याद करते हैं.

---छोटे

11 comments:

  1. aaj we maulana hote to kareem khan ko kitna bhada dete...?

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  2. मैं भी आरा से हूँ.....कहानी पढकर अच्छा लगा
    साधुवाद

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  3. मैं भी आरा से हूँ.....कहानी पढकर अच्छा लगा
    साधुवाद

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  4. ऐसी ही कहानी मेरी दादी जी के नाना जी की भी है, वो भी टमटम चलाते थे।

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  5. http://sandeepbharadwaj1983.blogspot.in/2017/08/unconditional-love.html?m=1

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  6. kya mai sir ji aap se baat kar sakta hu

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  9. Great story..thanx for sharing
    Mysteries tube

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