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Tuesday 24 July 2018

वीरान हवेली की रहस्यमय बुढ़िया



-छोटे

यह कहानी उस जमाने की है जब शिकार खेलने पर प्रतिबंध नहीं था। चार दोस्त हिरन का शिकार करने बिहार के नवादा जिले के गोविंदपुर के जंगलों में निकले। उनके पास दो राइफलें और दो दोनाली बंदूक थीं। उनलोगों ने चार जंगली मुर्गे मारकर शिकार की शुरुआत की। तभी हिरनों के एक झुंड नजर आया। उन्हें निसाने पर लेने के लिए वे बेतहाशा भागे। इसी क्रम में उनमें से एक बिछड़ गया। उसका नाम शेखर था। वह जंगल की पगडंडियों में रास्ता भटक गया। धीरे-धीरे रात होने लगी। न बाकी दोस्तों का पता चल रहा था न जंगल से बाहर निकलने का रास्ता नज़र आ रहा था। शेखर के कंधे पर बंदूक और झोले में दो मुर्गे थे। अब किसी तरह रात काटनी थी और सुबह होने तक इंतजार करना था। शेखर सी तरह जंगल की एक पगडंडी पर चला जा रहा था कि थोड़ी दूरी पर रौशनी नज़र आई। उसने सोचा कि कोई न कोई तो वहां पर होगा। वह रौशनी की ओर बढ़ता चला गया। नजदीक जाने पर देखा कि वह पुराने महल का खंडहर है जिसके कुछ हिस्से ढह गए हैं कुछ बचे हुए हैं। महल का दरवाजा खुला हुआ था। वह बचे हुए हिस्से की ओर बढ़ा और टार्च की रौशनी में सीढ़ियां चढ़ता हुआ पहली मंजिल पर पहुंच गया। वहां एक कंदील जल रही थी। उसने टार्च बुझा दी और वहीं फर्श पर लेट गया। वह सो भी नहीं पा रहा था और जगे रहना भी मुश्किल लग रहा था।
रात को अचानक एक बूढ़ी औरत आई। बुढ़िया ने पूछा-
क्यों बेटे, लगता है बहुत थक गए हो।
शेखर चौंककर उठा। आंखें मलते हुए देखा। वह 90-95 वर्ष की बूढ़ी महिला थी। उसने सफेद साड़ी पहन रखी थी।
शेखर बोला-जी रास्ता भटक गया था। रात काटने की जगह नज़र आ तो आ गया। थका था तो नींद आ गई। लेकिन आप कौन है?
- मैं यहीं रहती हूं। यहां लोग तुम्हारी तरह भटककर ही आते हैं। इस वीराने में जानबूझकर कौन आता है?
-ये किसका महल है? इतने वीराने में किसने, कब, क्यों बनवाया?
-ये एक लंबी कहानी है। लेकिन पहले कुछ खा पी लो फिर कहानी सुनना।
-खाने को क्या मिलेगा ?
-मैं लाती हूं।
-मेरे पास जंगली मुर्गा है।
-ठीक है निकालो।
शेखर ने झोले से निकालकर मुर्गा दिया। बुढ़िया उसे लेकर चली गई। एक घंटे के बाद रोटी और मुर्गा लेकर आई। शेखर ने भोजन कर लिया।
-अब बताओं मां जी।
बुढ़िया ने बताना शुरू किया...।
यह एक जालिम जमींदार का बनवाया हुआ है। यहां उसकी अय्याशी के लिए लड़कियां पकड़कर लाई जाती थीं। जिस भी लड़की पर उसकी नज़र पड़ जाती उसे वह उसके मां-बाप से कहकर बुलवा लेता। आनाकानी करने पर जबरन उठवा लेता। उसके डर से लोगों ने अपनी बेटियों को घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दिया था। फिर भी उसके आदमी किस-किस घर में जवान लड़की है, पता कर लेते थे। वह इस हवेली में बुला ली जाती थी। एक बार की बात है। यहां से पांच कोस की दूरी पर एक गांव है रघुनाथपुर। वहां एक किसान परिवार के पास मुंबई से एक रिश्तेदार आए। उनके साथ बेटी सुरेखा भी थी। किसान ने वहां के हालात की जानकारी देकर समझाया कि सुरेखा को घर से बाहर नहीं जाने देना है। सुरेखा आधुनिक लड़की थी। जूडो-कराटे जानती थी। उसने कहा कि मुंबई से गांव में आई है तो गांव का जीवन देखेगी। जमींदार उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह अपनी जिद में खेत-खलिहान बाग-बगीचे का चक्कर लगाती रहती।
एक दिन जमींदार की सवारी उधर से गुजर रही थी। उसकी नज़र सुरेखा पर पड़ गई। उसने से रोककर पूछा-
तुम इस गांव की तो नहीं हो। कहां से आई हो? किसके घर पर ठहरी हो?
सुरेखा ने पूछा-
तो तुम्हीं जमींदार हो जो लड़कियों को उठा लेते हो?
-बहुत समझदार हो? कहां ठहरी हो?
तभी किसान भागा-भागा वहां पहुंचा जमींदार से बोला-
सरकार ये मेहमान है। एक-दो रोज में चली जाएगी।
-ठीक है आज तो है। आज रात को यह मेरी मेहमान होगी। शाम को इसके लिए सवारी भेज दूंगा।
इतना कहकर जमींदार चला गया।
किसान ने सुरेखा से विफरकर कहा-
मना किया था न बाहर मत घूमो। वही हा जिसका डर था।
-चिंता मत कीजिए। वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा और आज के बाद वह इस लायक नहीं रहेगा कि किसी पर जुल्म ढा सके। आप निश्चिंत रहिए। सवारी आने दीजिए। मैं जाउंगी और आराम से लौट आउंगी।
शाम को जमींदार ने डोली भेजा। सुरेखा आराम से उसपर बैठ गई। हवेली में आने के बाद जमींदार उसे हवस का शिकार बनाने के लिए बढ़ा तो उसने कराटे का एक वार कर उसे अचेत कर दिया। इसके बाद हवेली की छत पर चली गई। उसने देखा कि बाहर चप्पे-चप्पे पर उसके हथियारबंद पहरेदार तैनात थे। वह निकलने का उपाय सोच ही रही थी कि जमींदार तलवार लिए हुए छत पर आया।
-तुम बहादुर हो। शेरनी हो। मेरी बात मान लो नहीं तो मरने के लिए तैयार हो जाओ।
सुरेखा ने एक छलांग लगाई। जमींदार की तलवार उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई। जमींदार ने सुरेखा को उठा लिया और छत से फेंक दिया लेकिन सुरेखा ने गिरते-गिरते उसकी बांह पकड़ ली और वह भी सके साथ नीचे गिर पड़ा। दोनों की मौत हो गई। सुरेखा की मौत की खबर सुनकर उसकी मां मुंबई से आई। उसने जमींदार परिवार को निर्वंश हो जाने का शाप दिया। इसके बाद जमींदार परिवार में लोगों की किसी न किसी कारण मौत होने लगी और सका वंश खतम हो गया। यही इस वीरान हवेली की कहानी है। सुरेखा और उसकी मां की प्रेतात्मा इसी हवेली में रहती है।
-प्रेतात्मा रहती है? लेकिन मुझे तो परेशानी नहीं हुई। थोड़ा डर लगा लेकिन नींद बी आ गई।
-सारी प्रेतात्माएं बुरी नहीं होतीं बेटे। उनकी जिससे दुश्मनी होती है उसी का नुकसान करती हैं। भले लोगों की मदद करती हैं।
-आपको कभी दिखाई पड़ीं।
-हां, अक्सर। अच्छा, अब सुबह होने वाली है। मैं चलती हूं। हवेली से निकलकर बाईं तरफ पगडंडी से सीधा निल जाना। तुमको जंगल के बाहर निकलने का रास्ता मिल जाएगा।
तभी एक 17-18 साल की लड़की आई बोली-
मां अब चलो भी...।
-यह कौन है?....शेखर ने पूछा।
-यह सुरेखा है और मैं इसकी मां।
शेखर कुछ समझ पाता ससे पहले दोनों हवा में विलीन हो गईं। उसने अपनी राइफल उठाई और बाहर निकल आया। हल्का-हल्का उजाला हो चला था। उसने एक नज़र हवेली पर डाली और बुढ़िया की बताई पगडंडी पर बढ़ता चला गया।

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Thursday 5 July 2018

रिक्शेवाले का भूत



1965-66 की घटना है।
वह अमावस्या की रात थी। घनघोर अंधेरा था। रात के डेढ़ बज रहे थे। नरेंद्र प्रसाद की ट्रेन बक्सर स्टेशन पर रुकी। वे बाहर निकले। वे पटना में नौकरी करते थे और रोजाना बक्सर से आते-जाते थे। आमतौर पर वे मगध एक्सप्रेस से 9 बजे तक पहुंच जाते थे। उस दिन गाड़ी छूट गई थी। तूफान एक्सप्रेस से लाटे थे। गाड़ी लेट थी।
वे स्टेशन से बाहर निकले तो एक रिक्शा दिखाई पड़ा। उन्होंने रिक्शेवाले से सैनी पट्टी चलने को कहा और भाड़ा तय किए बिना बैठ गए। उन दिनों बक्सर में टेंपो नहीं चलता था। आवागमन का एकमात्र साधन रिक्शा था। सड़क पर स्ट्रीट लाइट था लेकिन थोड़ी-थोड़ी दूरी पर।
स्टेशन परिसर से रिक्शा निकला तो स्ट्रीट लाइट की रौशनी थी। लेकिन एक फर्लांग आगे बढ़ने के बाद अंधेरा मिला। अचानक नरेंद्र प्रसाद की नज़र रिक्शेवाले पर पड़ी तो देखा रिक्शा चल रहा है लेकिन चलाने वाला नज़र नहीं आ रहा है। वे कुछ समझ पाते तबतक गला स्ट्रीट लाइट आ गया और रिक्शावाला नज़र आने लगा। इसके बाद जहां अंधेरा पड़ता वह अदृश्य हो जाता फिर रौशनी होने पर दिखाई देता। नरेंद्र प्रसाद के मन में भय व्याप्त हो गया लेकिन इतनी रात को वे कुछ कर भी नहीं सकते थे। उन्होंने अपने आप को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। रिक्शावाले से कुछ बोलना उन्हें उचित नहीं लगा। राम-राम करते रिक्शा सैनीटाड़ में दाखिल हुआ। नरेंद्र प्रसाद की आदत थी कि वहां गौरीशंकर मंदिर के पास वे जाते वक्त और लौटते वक्त दर्शन जरूर करते थे। उन्होंने मंदिर के पास रिक्शे को रुकवाया और भाड़ा देने लगे। भाड़ा देते समय जब रिक्शेवाले की हथेली पर नज़र पड़ी तो वे चौंक उठे। उसकी हथेली सामान्य आदमी की हथेली से तीन-चार गुनी बड़ी थी। उन्होंने पैसा दिया और मंदिर के अंदर भागे। रिक्सेवाले ने कहा-जाओ बच्चू, गौरीशंकर के चलते बच गए। नहीं तो आज मेरे हाथों मारे जाते। उन्होंने मुड़ के देखा तो वहां न रिक्शा था न रिक्शेवाला। वे मंदिर में गए और मूर्ति के सामने सर पटकने लगे।
घर पहुंचने के बाद उन्होंने किसी से इस घटना का जिक्र नहीं किया क्योंकि घर वाले नाहक डर जाते। लेकिन स दिन के बाद वे देर होने पर पटना में रुक जाना बेहतर समझने लगे।
करीब 10 साल बाद विष्णु दयाल नामक एक व्यक्ति के साथ भी इसी तरह की घटना घटी। वे कृष्णा टाकिज के पास रहते थे। वहां के हुमान मंदिर के प्रति उनकी विशेष श्रद्धा थी। एक दिन जब वे रात के डेढ़-दो बजे बक्सर स्टेशन पर तरे तो बाहर वही रिक्शेवाला मिला। उन्होंने भी देखा कि अंधेरे में वह गायब हो जाता था और रोशनी में दिखाई देता था। वे हनुमान मंदिर के पास उतरे और पैसा देने लगे तो सकी विशाल हथेली देखकर चर गए। पैसा हाथ मे डालकर वे भागते हुए हनुमान जी की मूर्ति के पास आकर दंडवत हो गए। रिक्सेवाले ने कहा-आओ हनुमान जी ने तुम्हें बचा लिया।
इसके बाद देर रात स्टेशन पर तरने वाले कई लोगों का रिक्शेवाले प्रेत से पाला पड़ता रहा। बक्सर के लोग अभी भी उसकी कहनियों को सुनते-सुनाते हैं। उनके मुताबिक उस जमाने में देर रात को को एक गुंडे ने भाड़े के विवाद में एक रिक्शेवाले को चाकू से गोदकर मार डाला था। तब से रात को उसका भूत स्टेशन पर मंडराता रहता था। अब समय बदल चुका है। शहर की आबादी बढ़ गई है। औटो और टैक्सी का जमाना आ गया है। रात के वक्त भी स्टेशन से शहर में जाने में कोई समस्या नहीं है। इसलिए इस तरह की घटनाएं सुनाई नहीं देतीं।

Wednesday 4 July 2018

प्रेतात्मा ने खोला अपनी मौत का रहस्य



-नागेंद्र प्रसाद

झारखंड के घाटशिला की घटना है। सुरेश चंद्र की पहली पत्नी का देहांत हो गया था। उससे उनकी दो बेटियां थी। बड़ी बेटी चंदा छह साल की और छोटी बेटी बिंदा 4 साल की ( सभी नाम काल्पनिक लेकिन घटना सच्ची)। सुरेश बाबू ने बच्चों की देखभाल के लिए दूसरी शादी कर ली।
एक दिन की बात है। शाम का समय था। बच्चे घर से कुछ ही दूरी पर अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे। अचानक गेंद के पीछे भागती हुई चंदा गायब हो गई। बिंदा रोती हुई घर पहुंची। सुरेश बाबू तुरंत से खोजने के लिए निकले। सभी संभावित जगहों पर गए लेकिन चंदा का कुछ पता नहीं चला। घर के सारे लोग परेशान हो उठे।
अगले दिन नदी के किनारे एक बच्ची का शव मिला। सुरेश बाबू बिंदा को लेकर वहां पहुंचे तो देखा लाश चंदा की थी। उन्होंने पुलिस को खबर की। पुलिस ने संदेह व्यक्त किया कि किसी ने दरिंदगी करके उसे मार डाला है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। इस बीच बिंदा को वहां एक पका हुआ आम पड़ा हुआ मिला। उसने धीरे से उसे उठा लिया और खा लिया।
शाम होते-होते बिंदा को तेज़ बुखार आया और वह बेहोश हो गई। सुरेश बाबू परेशान हो उठे। वे चंदा के शव को दफनाने के बाद पड़ोसियों के साथ वापस ही लौटे थे कि छोटी बेटी का भी हाल खराब मिला। वे डाक्टर के पास गए। डाक्टर के पास जाते-जाते वह होश में आ गई और उसका बुखार भी खत्म हो गया। डाक्टर ने कहा कि उसे कोई बीमारी नहीं है। थकावट या सदमे से बेहोश हुई होगी। लेकिन घर आने के बाद फिर उसकी हालत पहले जैसी हो गई।
पड़ोसियों ने सलाह दी कि इसे किसी ओझा-गुनी से दिखा लिया जाए। संभव है हवा लगी हो। कुछ लोगों को साथ लेकर वे एक तांत्रिक के पास गए। तांत्रिक सबको लेकर पास के काली मंदिर में गया। वहां सभी लोग तो मंदिर के अंदर चले गए लेकिन बिंदा अंदर जाने को तैयार नहीं हुई और बुरी तरह रोने लगी। तांत्रिक ने पूछा-क्या बात है...तुम अंदर क्यों नहीं जा रही है। रो क्यों रही है।
इसपर बिंदा ने चंदा की आवाज़ में कहा-मैं चंदा हूं। इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाउंगी लेकिन इसके साथ रहूंगी।
-क्यों इसके साथ रहना चाहती हो तुम...। तांत्रिक ने पूछा।
बिंदा के अंदर से चंदा की आवाज़ आने लगी—
-मुझे मेरी नई मां ने नए मामा के मिलकर मारा है। जो आम बिंदा खाई थी उसी को दिखाकर नया मामा नदी तरफ ले गया था। बिंदा के खाने के बाद से ही मैं उसके शरीर में हूं। मुझे बदला लेना है। मैं अकेले उन्हें नहीं मार सकती। इसीलिए अपनी बहन की मदद लेना चाहती हूं। इसका कुछ नहीं बिगाड़ूंगी।
-पुलिस उनको सज़ा दिलवाएगी। तुम इसको छोड़ दो।
-नहीं...मैं बदला लेने से पहले नहीं छोड़ूंगी।
तांत्रिक ने मंत्र पढ़कर पानी का छींटा मारा। बिंदा सामान्य हो गई। मंदिर में गई। पूजा भी की। वापस लौटने के बाद सुरेश बाबू ने अपनी दूसरी पत्नी को खूब फटकार लगाई और घर से निकाल दिया। लेकिन बिंदा के अंदर फिर चंदा की आत्मा सवार हो गई। वह चंदा की आवाज़ में बड़बड़ाने लगी।
इधर पुलिस ने इस एंगल से मामले की छानबीन करनी शुरू कर दी। बिंदा सामान्य रहती फिर अचानक देर रात को घर से निकलकर कुयें के पास बैठकर रोने लगती। सुरेश बाबू ने एक पहुंचे हुए मौलाना से संपर्क किया। पूरी बात बताई। मौलाना ने बिंदा को अपने इल्म का इस्तेमाल कर चंगा कर दिया। इस बीच पुलिस मामले की तह तक पहुंच गई। सुरेश बाबू की दूसरी पत्नी और उसके भाई को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया। न्यायालय से उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा मिली।
इसके बाद बिंदा सामान्य जीवन जीने लगी। अपनी पढ़ाई लिखाई टीक से करने लगी। अब वह बड़ी हो गई है लेकिन अभी भी कभी-कभार चंदा की आत्मा उसपर सवार हो जाती है। उस वक्त वह अजीबो-गरीब हरकतें करने लगती है। लेकिन यह कुछ ही समय के लिए होता है।


Tuesday 3 July 2018

एक रहस्य जो अनसुलझा रह गया

यह कहानी मेरे चचेरे भाई की है। उस वक्त वह इलाहाबाद में पढ़ाई कर रहा था और वहीं एक होटल में कमरा लेकर रहता था। उस होटल में ज्यादातर लोग मासिक किराये के आधार पर रहते थे। उनके किराये में सुबह की चाय और दोनों वक्त का सामिष भोजन शामिल था। उसका कमरा होटल की पहली मंजिल पर सीढ़ियों से लगा हुआ था। वह निडर और लड़ाकू मिजाज का था। हमेशा जेब में एक चाकू रखता था। उसने स्वयं यह कहानी सुनाते हुए बताया था कि रोज रात को एक-डेढ़ बजे करीब पायल बजने की आवाज़ सुनाई देती थी। वह सशंकित होकर सोचता था कि इस होटल में कोई लड़की रहती नहीं है तो फिर पायल की आवाज़ कहां से आ रही है। उसके खुराफाती दिमाग में यह बात आई कि हो न हो यहां गुपचुप तरीके से देह व्यापार जैसा कोई धंधा चलता है। जैसे ही आवाज़ आती वह चाकू हाथ में लेकर आवाज का स्रोत तलाशने के लिए कमरे से निकल जाता और पूरे होटल का चक्कर लगाता लेकिन कोई सुराग नहीं मिलता। यह चक्कर करीब एक महीने तक चलता रहा।
एक दिन की बात है वह अपने कमरे के बाहर रेलिंग पर बैठकर सुबह की चाय पी रहा था तभी नीचे आंगन में खड़े रसोइए ने इस तरह बैठने से मना किया। उसने पूछा क्यों न बैठूं इस तरह। कौन रोकेगा।
रसोइए ने कहा कि पहले इस कमरे में जो बाबू रहते थे एक दिन उसी तरह चाय पी रहे थे कि नीचे गिर गए। भाई ने पूछा-अच्छा, फिर क्या हुआ उनका।
रसोइए ने बताया कि उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन वे बच नहीं सके। उनकी मौत हो गई। इसीलिए इस तरह कोई बैठता है तो डर लगता है।
बात आई-गई हो गई। रात को पायल की आवाज़ आने और उस आवाज़ के पीछे भागने का सिलसिला जारी रहा। करीब डेढ़ माह इसी तरह गुजर गए। एक दिन वह अपने कुछ दोस्तों के साथ होटल के सामने पान की दुकान पर खड़ा था। अचानक उसने दोस्तों से यह बात साझा कर दी। पान दुकानदार ने पूछा-क्या आप सामने वाले होटल में रहते हैं....। भाई ने कहा-हां। उसने बताया कि उस होटल का मालिक पुराना बदमाश है। उसने इस होटल में बहुत सारे तीर्थयात्रियों को मारकर उनका धन लूटा है। सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी है। उनकी लाशें आंगन में मौजूद कुएं में खपा दी हैं। इसमें अतृप्त आत्माओं का वास है।
भाई को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके दोस्तों ने कहा कि आज वे सारे लोग उस कमरे में रात बिताएंगे और देखेंगे कि मामला क्या है।
उस रात करीब सात-आठ लोग हर्वे-हथियार से लैस होकर कमरे में आए। उतने लोग सो तो सकते नहीं थे। कुछ लोग ताश खेलने बैठ गए। कुछ गप्पें मारने लगें। रातभर जगने की तैयारी थी। एक मित्र सीढ़ी के सामने चादर बिछाकर सो गए। रात के करीब डेढ़ बजे वे अकचका कर उठे और कमरे के अंदर आकर बोले कि उन्हें लगा कि कोई उनका गला दबा रहा है और नींद टूट गई। सबने कहा कि आपको वहम हो गया है जाइए सो जाइए। वे सोने चले गए। फिर कुछ देर बाद लौटे और कहा कि फिर कोई गला दबा रहा था। भाई ने कहा कि बैठकर ताश खेलिए। उस रात पायल की आवाज़ नहीं सुनाई पड़ी या फिर  शोरगुल की आवाज़ में दब गई।
अगले दिन इलाहाबाद एक परिचित परिवार की एक युवती जिसे सारे लोग दीदी कहकर पुकारते थे को इसकी जानकारी हो गई। उन्होंने भाई को बुलाया और तुरंत घर बदल देने को कहा। भाई ने बात मान ली और होटल छोड़ दिया। लेकिन आज भी उस रहस्य को समझ नहीं पाया कि आखिर उस होटल में क्या था, जिसे सिर्फ वह महसूस करता था। होटल में रह रहे और लोगों का अनुभव क्या था पता नहीं क्योंकि वह अन्य लोगों से अपनी बातें शेयर नहीं करता था।