1965-66 की घटना है।
वह अमावस्या की रात थी। घनघोर अंधेरा था। रात के डेढ़ बज रहे थे।
नरेंद्र प्रसाद की ट्रेन बक्सर स्टेशन पर रुकी। वे बाहर निकले। वे पटना में नौकरी
करते थे और रोजाना बक्सर से आते-जाते थे। आमतौर पर वे मगध एक्सप्रेस से 9 बजे तक पहुंच
जाते थे। उस दिन गाड़ी छूट गई थी। तूफान एक्सप्रेस से लाटे थे। गाड़ी लेट थी।
वे स्टेशन से बाहर निकले तो एक रिक्शा दिखाई पड़ा। उन्होंने
रिक्शेवाले से सैनी पट्टी चलने को कहा और भाड़ा तय किए बिना बैठ गए। उन दिनों
बक्सर में टेंपो नहीं चलता था। आवागमन का एकमात्र साधन रिक्शा था। सड़क पर स्ट्रीट
लाइट था लेकिन थोड़ी-थोड़ी दूरी पर।
स्टेशन परिसर से रिक्शा निकला तो स्ट्रीट लाइट की रौशनी थी। लेकिन एक
फर्लांग आगे बढ़ने के बाद अंधेरा मिला। अचानक नरेंद्र प्रसाद की नज़र रिक्शेवाले
पर पड़ी तो देखा रिक्शा चल रहा है लेकिन चलाने वाला नज़र नहीं आ रहा है। वे कुछ
समझ पाते तबतक गला स्ट्रीट लाइट आ गया और रिक्शावाला नज़र आने लगा। इसके बाद जहां
अंधेरा पड़ता वह अदृश्य हो जाता फिर रौशनी होने पर दिखाई देता। नरेंद्र प्रसाद के
मन में भय व्याप्त हो गया लेकिन इतनी रात को वे कुछ कर भी नहीं सकते थे। उन्होंने
अपने आप को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। रिक्शावाले से कुछ बोलना उन्हें उचित नहीं
लगा। राम-राम करते रिक्शा सैनीटाड़ में दाखिल हुआ। नरेंद्र प्रसाद की आदत थी कि
वहां गौरीशंकर मंदिर के पास वे जाते वक्त और लौटते वक्त दर्शन जरूर करते थे।
उन्होंने मंदिर के पास रिक्शे को रुकवाया और भाड़ा देने लगे। भाड़ा देते समय जब
रिक्शेवाले की हथेली पर नज़र पड़ी तो वे चौंक उठे। उसकी हथेली सामान्य आदमी की
हथेली से तीन-चार गुनी बड़ी थी। उन्होंने पैसा दिया और मंदिर के अंदर भागे।
रिक्सेवाले ने कहा-जाओ बच्चू, गौरीशंकर के चलते बच गए। नहीं तो आज मेरे हाथों मारे
जाते। उन्होंने मुड़ के देखा तो वहां न रिक्शा था न रिक्शेवाला। वे मंदिर में गए
और मूर्ति के सामने सर पटकने लगे।
घर पहुंचने के बाद उन्होंने किसी से इस घटना का जिक्र नहीं किया
क्योंकि घर वाले नाहक डर जाते। लेकिन स दिन के बाद वे देर होने पर पटना में रुक
जाना बेहतर समझने लगे।
करीब 10 साल बाद विष्णु दयाल नामक एक व्यक्ति के साथ भी इसी तरह की
घटना घटी। वे कृष्णा टाकिज के पास रहते थे। वहां के हुमान मंदिर के प्रति उनकी
विशेष श्रद्धा थी। एक दिन जब वे रात के डेढ़-दो बजे बक्सर स्टेशन पर तरे तो बाहर
वही रिक्शेवाला मिला। उन्होंने भी देखा कि अंधेरे में वह गायब हो जाता था और रोशनी
में दिखाई देता था। वे हनुमान मंदिर के पास उतरे और पैसा देने लगे तो सकी विशाल
हथेली देखकर चर गए। पैसा हाथ मे डालकर वे भागते हुए हनुमान जी की मूर्ति के पास
आकर दंडवत हो गए। रिक्सेवाले ने कहा-आओ हनुमान जी ने तुम्हें बचा लिया।
इसके बाद देर रात स्टेशन पर तरने वाले कई लोगों का रिक्शेवाले प्रेत
से पाला पड़ता रहा। बक्सर के लोग अभी भी उसकी कहनियों को सुनते-सुनाते हैं। उनके
मुताबिक उस जमाने में देर रात को को एक गुंडे ने भाड़े के विवाद में एक रिक्शेवाले को चाकू से गोदकर मार डाला था। तब से रात को उसका भूत स्टेशन पर मंडराता रहता था। अब
समय बदल चुका है। शहर की आबादी बढ़ गई है। औटो और टैक्सी का जमाना आ गया है। रात
के वक्त भी स्टेशन से शहर में जाने में कोई समस्या नहीं है। इसलिए इस तरह की
घटनाएं सुनाई नहीं देतीं।
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bhoot ki kahaniya in Hindi story
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